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Thursday, January 28, 2010

कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी आज अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी की दो दिवसीय यात्रा पर २८ जनवरी, २०१०

शिविर : अमेठी (उत्तर प्रदेश)
दिनांक : २८ जनवरी, २०१०
समय : ०४:०० बजे अपराह्न

कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी आज अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी की दो दिवसीय यात्रा पर यहाँ पहुंचे। पूर्वाह्न ११:३० बजे उनका विमान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी की हवाई पत्ती पर उतरा। कांग्रेस महासचिव हवाई पत्ती से सीधे राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ़ पेट्रोलियाम टेक्नोलोजी के प्रस्तावित निर्माण स्थल पहुंचे कार्य की धीमी प्रगति पर राहुल गांधी ने सम्बंधित अधिकारियों से अपनी नाराजगी का इज़हार भी किया। इस संस्थान के लिए तकरीबन ११० एकड़ भूमि की आवश्यकता है, जिसमे से मात्र ४० एकड़ भूमि ही राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गयी है। २० फरवरी २००८ को इस संस्थान की आधारशिला यूं.पी.ए. अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा, राज्य मंत्री दिनशा पटेल और क्षेत्रीय सांसद राहुल गांधी की उपस्थिति में किया था। शैक्षिक सत्र २००८-०९ से रायबरेली के फ़िरोज़ गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी के परिसर में ही एम.बी.ए. तथा दो तकनीकी डिग्री कार्यक्रम आरम्भ कर दिए गए। इस संस्थान में भविष्य में स्नातक, परास्नातक, परास्नातक डिप्लोमा तथा शोध की सुविधाएं भी उपलब्ध होंगी। इस संस्थान के भवन निर्माण में विलम्ब के पीछे राज्य सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण में देरी प्रमुख कारण रही

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Tuesday, January 12, 2010

प्रियंका गांधी वाड्रा और उनका राजनैतिक करिश्मा

भारतीय राजनीति में संभवतः किसी व्यक्ति के आगमन की इतनी लम्बी प्रतीक्षा नहीं हुई होगी, जितनी प्रियंका गांधी वाड्रा की होती रही है. अटकलों का यह दौर १९९९ से ही शुरू हो गया था, जब प्रियंका गांधी ने लोकसभा चुनाव के दौरान अमेठी और बेल्लारी में अपनी माँ का चुनाव प्रबंधन सम्हाला और पारवारिक मित्र कैप्टेन सतीश शर्मा के प्रचार के लिए एक दिन का समय निकाला. तब से अब तक एक दशक से अधिक का समय बीत चुका है और प्रियंका के हर नए कदम के साथ अटकलों का एक नया दौर आरम्भ हो जाता है. तब से लोकसभा के तीन आम चुनाव और रायबरेली में एक उपचुनाव भी हो चुके हैं, प्रियंका गांधी के रायबरेली और अमेठी के हर दौरे के साथ इन अटकलों को मानों पंख लग जाते हैं. हर बार मीडिया का एक ही सवाल होता है आप सक्रिय राजनीति में कब आ रही हैं? और साथ ही प्रियंका का जवाब भी कि सही समय पर वह सक्रिय राजनीति में प्रवेश का फैसला करेंगी. उनकी नज़र में महज़ चुनाव लड़ना ही राजनीति में प्रवेश का सूचक नहीं है. प्रियंका के अनुसार राजनीति सेवा का माध्यम है और इस दृष्टि से प्रियंका गांधी वाड्रा तो बरसों से राजनीति में हैं. वह कांग्रेस की सदस्य होने के साथ परिजनों के लिए चुनाव अभियान का संचालन करती रहीं हैं.
राजनीतिक विश्लेषक तो १९९९ से ही प्रियंका गांधी वाड्रा की क्षमताओं के कायल रहे हैं. उन्होंने जब १९९९ के लोकसभाई चुनाव के दौरान पारिवारिक मित्र कैप्टेन सतीश शर्मा के चुनाव अभियान के लिए एक दिन का समय निकलने का फैसला किया था तब लोगों को विशवास नहीं था कि वे कोई करिश्मा कर पाएंगी. कारण स्पष्ट थे, १९९६ और १९९८ के लोकसभाई चुनाव में रायबरेली से कांग्रेसी प्रत्याशियों की ज़मानतें ज़ब्त हो चुकी थीं और दोनों बार भाजपा का प्रत्याशी सफल रहा था. १९९९ में रायबरेली से भाजपा ने नेहरु परिवार के ही हैवीवेट अरुण नेहरु को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया था. कैप्टेन सतीश शर्मा के सामने चुनौतियां ही चुनौतियां थीं, ऐसे में प्रियंका ने अपनी माँ के अभियान में एक दिन की कटौती कर कैप्टेन को आसरा दिया.
सितम्बर १९९९ का वो दिन आज भी आम लोगों और मीडियाकर्मियों को बखूबी याद जय, जब प्रियंका के एक दिन के तूफानी दौरे ने चुनाव की तस्वीर बदल दी और भाजपा प्रत्याशी अरुण नेहरु की हवा ही निकाल दी. नतीजे में, रायबरेली से एक बार फिर भाजपा की नैया में सवार होकर लोकसभा पहुँचने का अरुण नेहरु का सपना दिवास्वप्न बनकर रह गया. इस चुनाव में न सिर्फ अरुण नेहरु की ज़मानत ज़ब्त हो गयी, वे चौथे नंबर पर लुढ़क गए.
प्रियंका गांधी वाड्रा के राजनीतिक कौशल के कायल कार्यकर्ता से लेकर नेता तक सभी हैं. जिस सहजता के साथ वह कार्यकर्ताओं से संवाद स्थापित कर उनके दिलों में उतर जाती हैं, वह गुण कम ही लोगों में देखने को मिलता है. अभी तक भले ही उन्होंने भले ही खुद को रायबरेली और अमेठी तक सीमित कर रखा हो लेकिन उनके फैन सारे देश में मौजूद हैं. प्रियंका की राजनीतिक सक्रियता को लेकर लोगों में हमेशा उत्सुकता बनी रहती है, लेकिन वह ज़रुरत के समय हमेशा सक्रिय रही हैं. चाहे वह माँ के अमेठी और बेल्लारी में चुनाव अभियान हों या फिर बड़े भाई राहुल को अमेठी से परिचित कराने का दायित्व, हर मौक़ा आने पर उन्होंने स्वयं को प्रमाणित किया. इसके अलावा २००४ और २००९ में प्रियंका ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के चुनाव अभियान को गति दी.
वह राजनीति में रहकर भी खुद को राजनीति से दूर रखने की कला को बखूबी जानती हैं. खुद कांग्रेस कि सदस्य हैं, दोनों बच्चों को बाल कांग्रेस की सदस्यता दिला रखी है, लेकिन खुद को कांग्रेस के अंदरूनी मामलों से अलग रखने में कामयाब हैं. यह अलग बात है कि कि जब नरेन्द्र मोदी कांग्रेस को १२० साल की बुढ़िया करार देते हैं तो, वह खुद को रोक नहीं पातीं और खुद को कांग्रेस का चेहरा मानते हुए मीडिया से ही सवाल पूछ बैठती हैं " क्या में आप को बूढ़ी लगती हूँ? "
राजनीति से जुड़े रहकर भी दूर रहने की एक वजह शायद आज का राजनीतिक परिदृश्य भी है. २००४ में उन्होंने खुद मीडिया से कहा था," आप लोग हमेशा मेरे से पूछते हो, राजनीति में क्यों नहीं आती आप? यही वजह है, क्योंकि मेरी समझ में आजकल राजनीति में इंसानियत नहीं है. प्रियंका की नज़र में शायद इंसानियत अन्य मानवीय गुणों में सर्वोपरि है, तभी तो वह अपने पिता की ह्त्या के आरोप में सज़ा भुगत रही नलिनी से मिलने चुपचाप जेल पहुँच जाती हैं. पिता की हत्यारी महिला से एकांत में हुई यह भेंट, उस को प्रियंका का प्रशंसक बना देती है. इतना ही नहीं चुनाव अभियान के दौरान बुरी तरह जले एक बच्चे, जिसके पास डाक्टर तक जाने से कतराने लगे थे, को जाकर जो अपनत्व देती है वह व्यवहार बच्चे के परिजनों को प्रियंका का मुरीद बना देता है.
महिला सशक्तिकरण की पक्षधर प्रियंका ने अमेठी की महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के उद्देश्य से २००२ में अपने पारिवारिक ट्रस्ट के माध्यम से राजीव गांधी महिला विकास परियोजना आरम्भ की थी. शुरुआत में कांग्रेस पार्टी के झंडे कि सिलाई कर आत्मनिर्भरता की शुरुआत करने वाली महिलायें आज दुग्ध उत्पादन से लेकर हस्तशिल्प, सिलाई, कढाई और खाद्य परिरक्षण के क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही हैं. घूंघट में रहने वाली ये महिलायें दूसरे राज्यों में घूम कर आगे बढ़ने के गुर सीखकर आज ये दिल्ली हात से लेकर व्यापार मेलों तक में अपनी क्षमताओं की छाप छोड़ रही हैं,. परियोजना का विस्तार अब उत्तरप्रदेश के १६ जिलों में हो चुका है.
संवाद और भाषण की कला तो मानो उन्हें दादी इंदिरा गांधी से विरासत में मिली हो. १९९९ में अरुण नेहरु पर छोड़े शब्दबाण हों या चुनाव में कार्यकर्ताओं व आम लोगों को संबोधन, पुरानी पीढी के लोगों को इंदिरा गांधी की याद दिला जाती है. १९९९ में प्रियंका का अधिकार के साथ रायबरेली के लोगों से की गयी शिकायत लोगों के अंतर्मन को छू गयी और सारे पुर्वानुमान और समीकरण ध्वस्त हो गए. जब भी प्रियंका जनसमुदाय या मीडिया से मुखातिब होती हैं तो, आत्मविश्वास से लबरेज़ होती हैं. उनके सहजता से दिए गए उत्तर आलोचकों को भी निरुत्तर करने की सामर्थ्य रखते है.
साफ़ सुथरी और मानवीय राजनीति की चाहत रखने वाले तो प्रियंका गांधी वाड्रा के सक्रिय राजनीति में में प्रवेश की प्रतीक्षा तो व्यग्रता से करते रहेंगे. देखना यह है कि प्रतीक्षा का यह दौर कब ख़त्म होता है?
फ़िरोज़ नकवी

Priyanka Gandhi Vadra, Calendar 2010